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भक्ति, संगीत और मिलन का संगम — टेलवा बाजार में छठ महापर्व का भव्य समापन

भक्ति, संगीत और मिलन का संगम — टेलवा बाजार में छठ महापर्व का भव्य समापन

 

युवाओं की पहल से सजा बड़ुआ नदी तट, शास्त्रीय संगीत और जागरण ने बाँधा समां — प्रवासी बिहारी लौटे घर, मेला बना मिलन और आस्था का पर्व ,बिहार के जमुई ज़िले के टेलवा बाजार के समीप स्थित बड़ुआ नदी में दशकों से भगवान सूर्य नारायण की आराधना की परंपरा जीवित है। वर्ष 2018 से टेलवा बाजार के युवाओं — साहिल वर्णवाल, विपुल गुप्ता, गौरव वर्णवाल, शैलेश गुप्ता, रोनू बरनवाल, श्रवण विश्वकर्मा आदि — ने मिलकर इस धार्मिक परंपरा को नई दिशा दी। उन्हीं की पहल से आज यह मेला और प्रतिमा स्थापना एक बड़े सामूहिक आयोजन के रूप में पहचान बना चुकी है।
इस वर्ष छठ महापर्व के अवसर पर छठ पूजा समिति टेलवा बाजार की ओर से बड़ुआ नदी तट पर भव्य मेला आयोजित किया गया। मेला स्थल को आकर्षक रूप से सजाया गया था और शास्त्रीय संगीत के साथ भक्ति जागरण का आयोजन हुआ। पहली ही संध्या से प्रशासन की उपस्थिति बनी रही, जिससे पूरे कार्यक्रम का संचालन शांतिपूर्वक और व्यवस्थित ढंग से संपन्न हुआ।
आसपास के युवाओं और स्थानीय लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। समिति की ओर से घाट निर्माण, बाजार से घाट तक रास्तों की सफाई और अन्य व्यवस्थाएँ आपसी सहयोग से पूरी की गईं। आर्थिक सहयोग में टेलवा बाजार के साथ-साथ आसपास के लोगों ने भी आगे बढ़कर योगदान दिया।
छठ पूजा समिति के सदस्य श्रवण विश्वकर्मा, रोशन पांडे, विपुल गुप्ता, साहिल वर्णवाल और शैलेश गुप्ता से बातचीत के दौरान उन्होंने कहा —
“यह सिर्फ मेला या मूर्ति विसर्जन का आयोजन नहीं है, बल्कि एक सामाजिक मेल-जोल का प्रतीक है। बिहार के लोग चाहे देश के किसी भी कोने में हों, इस महापर्व पर घर जरूर लौटते हैं। उन्हें एक ही स्थान पर एकत्र कर पाना और उनके बीच वह अपनापन बनाए रखना हमारे लिए सबसे बड़ी संतुष्टि है। जब वर्षों बाद लोग एक-दूसरे से मिलते हैं, तो भगवान भास्कर की आराधना का यह माहौल हमारे लिए भावनात्मक संगम बन जाता है।”
छठ पूजा समिति के सचिव ने बताया कि जब वर्षों बाद लोग घर लौटकर इस मेले में एकत्र होते हैं, तो उनके चेहरों पर संतोष और प्रसन्नता साफ झलकती है। यही इस आयोजन की असली सफलता है।
मेला और पूजा के दौरान प्रशासन की टीम लगातार मौजूद रही। सुरक्षा, सफाई और यातायात व्यवस्था को लेकर अधिकारियों ने मुस्तैदी दिखाई। प्रशासन की उपस्थिति में प्रतिमा विसर्जन भी शांति और श्रद्धा के वातावरण में सम्पन्न हुआ।
समिति के सदस्यों ने कहा कि वे बिहार सरकार का ध्यान इस परंपरा की ओर आकर्षित करना चाहते हैं, ताकि आने वाले वर्षों में इस मेले को और बड़े पैमाने पर विकसित किया जा सके। उनका मानना है कि यह आयोजन न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि प्रवासी बिहारियों के बीच एकता और पहचान की डोर भी है।
स्थानीय लोगों ने भी कहा कि बड़ुआ नदी का यह छठ मेला पूरे इलाके को एक सूत्र में जोड़ता है। यह पर्व सिर्फ पूजा नहीं, बल्कि गाँव की आत्मा बन चुका है — जब सब घर लौटते हैं, तो पूरा इलाका जीवंत हो उठता है।


संवाददाता संदीप विश्वकर्मा