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अभिनेता मुकेश पाल ने उमेश पाल हत्याकांड पर दागे कई सवाल

अभिनेता मुकेश पाल ने उमेश पाल हत्याकांड पर दागे कई सवाल

 

संवाददाता पंकज सिंह 

 

बातचीत में अभिनेता ने बताया कि प्रयागराज के सुलेम सराय धूमनगंज में शुक्रवार की शाम हुई उमेश पाल की हत्या को लेकर पूरा समाज इस समय बहुत अक्रोशित हैं। इस वारदात ने एक बार फिर से 18 साल पहले हुई पूर्व विधायक राजू पाल की हत्या की घटना को ताजा कर दिया है।

जैसे ही उमेश पाल की सनसनीखेज वारदात की जानकारी समाज और कार्यकर्ताओं को हुई सभी लोग स्तब्ध, आक्रोशित हो गए और हम भी बहुत ही ज्यादा शॉक्ड हो गए और प्रदेश सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। आक्रोषित पुरे समाज और कार्यकर्ताओं ने प्रसाशन को एक समय सीमा दिया है कि उस समय के भीतर हत्यारोपियों की गिरफ्तारी नहीं होने पर एक बृहद आंदोलन की चेतावनी दी है और इसके किसी भी खामियाजे के लिए उत्तर प्रदेश सरकार को आगाह किया गया हैं। और केस को CBI को सौंपे जाने की मांग की है

उमेश पाल की हत्या कोई अचानक घटित नही हुई है विधायक राजू पाल जी की हत्या के बाद अगर समाज सड़कों पर संघर्ष किया होता तो मुकदमा फास्ट ट्रैक में चलता और अपराधी को फांसी होती तो शायद यह दिन देखना नही पड़ता 

सुलेम सराय निवासी अधिवक्ता उमेश पाल शहर पश्चिमी के पूर्व विधायक राजू पाल के मौसेरे भाई थे। वर्ष 2005 में बहुचर्चित राजू पाल हत्याकांड में वह मुख्य गवाह थे। वर्तमान समय में वह भारतीय जनता पार्टी की राजनीति करते थे। पिछले वर्ष डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सिराथू स्थित अपने चुनाव कार्यालय में उन्हें पार्टी की सदस्यता दिलाई थी। अब जब डिप्टी सीएम और वर्तमान शासन के पदाधिकारी ही सुरक्षित नहीं हैं तो एक आम आदमी की क्या सुरक्षा हो सकती हैं।

यह हत्या सरकार पर गंभीर प्रश्न खड़ा करती हैं कि एक बदमाश जेल मे रहते हुए भी कैसे अपनी गतिविधि को अंजाम दे रहा है और ख़ुफ़िया विभाग को तनिक भनक भी नहीं है।

 

उत्तर प्रदेश सरकार अगर जल्द से जल्द अपराधियों को नही पकड़ती है तो पुरे उत्तर प्रदेश मे प्रदर्शन किया जायेगा

 

लोकतंत्र की मजबूती के लिये जरूरी होता है कि क़ानूनं व्यवस्था दुरुस्त और स्वस्थ हो पर इसके लिये बेहद जरूरी होता है कि राजनीति ढांचा सही और शिक्षित हो। अन्याय के खिलाफ खड़े रहने की जिम्मेदारी सरकार के साथ साथ समाज की भी 

 होती है। अगर हमारा समाज मौन धारण हो तो समझ लेना चाहिए की हम जिंदा लाश है।

दुष्यंत एक गजल मुझे याद आता है 

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए 

इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए 

मेरे सीने में नहीं ,तेरे सीने में ही सही 

आग हो लेकिन जहां भी हो आग जलनी चाहिए 

 दोषी ठहराना मेरा मकसद नहीं 

मेरा मकसद है की यह सूरत बदलनी चाहिए