अंग्रेजों का बनाया 150 वर्ष पुराना लोहे का पुल कभी दिल्ली का इकलौता पुल हुआ करता था।
'लोहे के पुल' के नाम से मशहूर यह पुल डेढ़ सदी से अधिक समय में इतनी बार बाढ़ का गवाह बना है कि इसे यमुना नदी में पानी के खतरे के स्तर को मापने का संदर्भ बिंदु भी माना जाने लगा है। यह नदी पिछले सप्ताह से उफान पर है और बुधवार को इसका जलस्तर 1978 में बने 207.49 मीटर के रिकॉर्ड को तोड़ते हुए 207.71 मीटर के स्तर पर पहुंच गया था, जिससे दिल्ली के कई अहम हिस्सों में बाढ़ आ गई थी।
भाप के इंजन से इलेक्ट्रिक इंजन तक का किया सफर
यमुना का जलस्तर बढ़ने के कारण भारतीय रेल की जीवनरेखा माने जाने वाले इस ऐतिहासिक पुल को यातायात के लिए अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया था। रेलवे के पुलों, इमारतों और नेटवर्क विस्तार पर व्यापक अनुसंधान करने वाले भारतीय रेलवे के अधिकारियों और विशेषज्ञों ने पुराने यमुना ब्रिज को ''भारत की अमूल्य धरोहर'' बताया है। भारतीय रेलवे अनुसार ''यह लोहे का एक पुराना घोड़ा है, जो 1860 से यमुना नदी पर सरपट दौड़ रहा है। इसने भांप से चलने वाली ट्रेन के युग, डीजल युग और बिजली से चलने वाली ट्रेन के युग को देखा है।''
रेलवे रिकॉर्ड्स में ब्रिज नंबर 249 के नाम से है पहचान
भारत में रेल सेवा की शुरुआत 16 अप्रैल 1853 को बंबई/बोम्बे (अब मुम्बई) से ठाणे के बीच हुई थी।
'ब्रिजेस, बिल्डिंग्स एंड ब्लैक ब्यूटीज ऑफ नॉर्दर्न रेलवे' किताब के अनुसार, ''ब्रिटिश काल की सबसे सफल रेल कंपनियों में से एक'' तत्कालीन पूर्वी भारतीय रेलवे ने दिल्ली-हावड़ा लाइन का निर्माण किया था। उत्तरी रेलवे के पूर्व महाप्रबंधक विनू एन माथुर द्वारा लिखी इस पुस्तक में अविभाजित भारत में निर्मित विभिन्न रेलवे पुलों का इतिहास बयां किया गया है, जिनमें दिल्ली और प्रयागराज में यमुना पर बने ''प्रसिद्ध पुल'' भी शामिल हैं। रेलवे की शब्दावली में 'ब्रिज नंबर 249' के नाम से पहचाना जाने वाला पुराना यमुना ब्रिज दिल्ली-गाजियाबाद खंड पर स्थित है।
शुरुआत में इसे 16,16,335 पाउंड की लागत से एकल लाइन के रूप में बनाया गया था। माथुर की 450 पन्नों की किताब के मुताबिक, 1913 में इस पुल को दोहरी लाइन में बदला गया और बाद में 1930 में इसके नीचे बने सड़क मार्ग को चौड़ा किया गया।
उत्तर-पश्चिमी रेलवे ने 1925 में इस पुल के रखरखाव का जिम्मा अपने हाथ में ले लिया।
1866 में खोला गया गया था ये पुल
मौजूदा समय में इस पुल के रखरखाव का दायित्व उत्तरी रेलवे पर है। जी हडलस्टन द्वारा लिखी किताब 'हिस्ट्री ऑफ द ईस्ट इंडियन रेलवे' के अनुसार, दिल्ली में यमुना ब्रिज को यातायात के लिए 1866 में खोला गया। उस वक्त पहली बार हावड़ा और दिल्ली को एक रेल नेटवर्क से जोड़ा गया।
आज भी कुछ यात्री इस पुल से गुजरते वक्त नदी में सिक्के डालते हैं। यात्रियों को लगता है कि ऐसा करने से उन्हें कामयाबी मिलेगी और उनकी यात्रा सुखद रहेगी। दिल्ली में 2004 से भले ही पुराने पुल के समानांतर नये यमुना ब्रिज का निर्माण किया जा रहा है, लेकिन 'लोहे के पुल' से जुड़ी पुरानी यादें और औपनिवेशिक काल का आकर्षण हमेशा बरकरार रहेगा।