26 जनवरी के मौके पर हुसैनी वाला बॉर्डर पर जाने का मौका मिला
हुसैनी वाला बॉर्डर 1965 भारत पाकिस्तान युद्ध 1971 भारत पाकिस्तान युद्ध के लिया जाना जाता है
राष्ट्रीय शहीद स्मारक हुसैनीवाला तीन राष्ट्रीय शहीदों अर्थात् सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की अदम्य क्रांतिकारी भावना को दर्शाता है,जिन्होंने मातृभूमि के लिए हंसते-हंसते शहादत को गले लगाकर स्वतंत्रता की अमर ज्वाला जलाई। सरदार भगत सिंह और बीके दत्त ने भारत में ब्रिटिश शासन के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराने के लिए 8 अप्रैल, 1929 को नई दिल्ली के सेंट्रल असेंबली हॉल में बम फेंका। उन्हें और उनके दो बहादुर साथियों राजगुरु और सुखदेव पर 17 दिसंबर, 1928 को एक ब्रिटिश पुलिस अधिकारी श्री सौंद्रास को गोली मारने का मुकदमा चलाया गया। इन तीनों क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनाई गई। लाहौर षडयंत्र केस की जल्दबाजी में की गई सुनवाई के बाद उन्हें निर्धारित फांसी से एक दिन पहले 23 मार्च, 1931 को शाम 7.15 बजे सेंट्रल जेल लाहौर में फांसी दे दी गई जेल अधिकारियों ने जेल की पिछली दीवार तोड़कर गुप्त रूप से सरदार भगत सिंह और उनके साथियों के शवों को सतलुज नदी के किनारे इस स्थान पर ले जाकर उनका असंस्कारपूर्ण अंतिम संस्कार कर दिया। श्री बी.के. दत्त का निधन 19 जुलाई 1965 को दिल्ली में हुआ और उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार उनका अंतिम संस्कार भी यहीं किया गया।
हुसैनीवाला से जुड़ी कुछ खास बातें
- हुसैनीवाला गांव, पंजाब के फिरोज़पुर ज़िले में है.
- यह गांव, सतलुज नदी के किनारे बसा है.
- हुसैनीवाला में राष्ट्रीय शहीद स्मारक बनाया गया है.
- हुसैनीवाला गांव को भारत ने पाकिस्तान से 17 जनवरी, 1961 को वापस लिया था.
- भारत ने पाकिस्तान से 12 गांवों का बदले में हुसैनीवाला गांव लिया था.
- हुसैनीवाला में 23 मार्च को शहीद दिवस और 14 अप्रैल को बैसाखी के मेले लगते हैं.
- हुसैनीवाला गांव में भगत सिंह की मां विद्यावती का भी अंतिम संस्कार किया गया था.
- हुसैनीवाला गांव में बटुकेश्वर दत्त का भी अंतिम संस्कार किया गया था.
मुकेश गुप्ता की रिपोर्ट