कृष्णा उपहार
ठोकर ठोकर खात मैं
घूमत चारों और
मिलत ना कोई एक मुझे
पूछ लियो जो मेरा हाल
सबका आपन कर्म ये
भोग रहियो यहां जो सब
नाम हरी जो जप लियो
सुख भोगी फिर हर और
नाटक नाटक सा जगत ये
कुछ नही जो यहां सच
सत्य है तो बस एक है
नाम हो जिनको घनश्याम
नमो नमो नारायणना
जो जपत वो होत श्रेष्ठ
ज्ञान शौर्य उसे मोक्ष मिले
जपत निरंतर जो राधेश्याम
भूल चूक परभु माफ़ किजो
अगर हो गयो जो मोहसे पाप
दे दान मोको असीस तुम्हार
कर बेड़ा मेरो तू पार।।
लेखक रंजीत शर्मा