INDIA WEATHER
INDIA WEATHER

जनता, सरकार और पुलिस, विश्वास, सहयोग और पारदर्शिता

जनता, सरकार और पुलिस,विश्वास,सहयोग और पारदर्शिता

देश में जनता पुलिस से खुश क्यों नहीं है पुलिस समाज में सुरक्षा बनाए रखने और कानून का पालन सुनिश्चित करने वाली मुख्य संस्था है। वे न केवल अपराध रोकते हैं, बल्कि संकट के समय जीवन और संपत्ति की सुरक्षा भी करते हैं। भारत जैसे विशाल और विविध देश में यह जिम्मेदारी और भी चुनौतीपूर्ण हो जाती है। बावजूद इसके, अक्सर यह देखा जाता है कि जनता पुलिस से संतुष्ट नहीं रहती। इसका कारण केवल पुलिसकर्मियों की मेहनत की कमी नहीं है, बल्कि इसके पीछे कई सामाजिक, प्रशासनिक और मनोवैज्ञानिक पहलू हैं तथा वही जनता अक्सर चाहती है कि पुलिस हर समस्या को तुरंत और पूरी तरह हल करे। लोगों की अपेक्षा होती है कि पुलिस हर परिस्थिति में सक्षम और सभी संसाधनों से लैस हो। वास्तविकता यह है कि अपराध और सामाजिक विवाद इतने जटिल होते हैं कि उनका त्वरित समाधान हमेशा संभव नहीं होता। उदाहरण के तौर पर, साइबर अपराध या घरेलू हिंसा या अन्य अपराध जैसी घटनाओं में कई बार पुलिस को कानूनी प्रक्रियाओं और तकनीकी जांचों के कारण समय लगता है, जिससे जनता को लगता है कि पुलिस सुस्त या असक्षम है और कुछ पुलिसकर्मी रिश्वत, पक्षपात या कठोर व्यवहार के कारण जनता के भरोसे को खो देते हैं!यह केवल व्यक्तिगत दोष नहीं बल्कि पूरे विभाग की छवि पर असर डालता है। उदाहरण के लिए, किसी इलाके में किसी संपन्न व्यक्ति के मामले को जल्दी निपटाने और गरीब या कमजोर वर्ग के मामलों में देरी होने की खबरें जनता में निराशा पैदा करती हैं!यही नही बल्कि देश के कई जिलों और कस्बों में पर्याप्त पुलिसकर्मी नहीं हैं! आधुनिक तकनीक और उपकरणों की कमी भी पुलिस की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है। कई बार जनता को मदद में देरी या कमज़ोरी महसूस होती है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में एक पुलिसकर्मी हजारों लोगों के क्षेत्र की जिम्मेदारी संभालता है, जिससे पुलिस जनता की अपेक्षाओं पर खरा नहीं उतर पाती हैं।हमारे देश मे अक्सर पुलिस को राजनीतिक या प्रशासनिक दबाव के तहत काम करना पड़ता है। कभी-कभी उन्हें कानून और न्याय की बजाय निर्देशों का पालन करना पड़ता है। इससे जनता का विश्वास कमजोर होता है और पुलिस निष्पक्ष नहीं लगती। उदाहरण के तौर पर, चुनाव के समय या विरोध प्रदर्शनों में पुलिस को राजनीतिक आदेशों का पालन करते हुए देखा जाता है, जिससे जनता में असंतोष बढ़ता है।आज मीडिया और सोशल मीडिया छोटी गलतियों या विवादित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। जबकि पुलिस के अच्छे काम अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। उदाहरण के तौर पर, एक पुलिसकर्मी ने चोरी की गई संपत्ति बरामद कर दी या किसी आपात स्थिति में लोगों की जान बचाई, लेकिन सोशल मीडिया में केवल किसी विवादित कार्रवाई की खबर वायरल हो जाती है।जब आस-पास अपराध बढ़ता है या लोग खुद को असुरक्षित महसूस करते हैं, तो वे पुलिस को दोषी मानते हैं। यह भावना वास्तविक सुरक्षा और पुलिस की मेहनत के बीच अंतर को दर्शाती है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी इलाके में सड़क पर अकेले चलने वाले लोगों को डर लगता है, तो वे पुलिस की मेहनत को नजरअंदाज करते हुए असंतोष प्रकट करते हैं।जबकि पुलिसकर्मी लगातार हिंसा, अपराध और तनावपूर्ण परिस्थितियों का सामना करते हैं। लंबे समय तक ऐसे माहौल में काम करने से मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है। इसका असर कभी-कभी उनके व्यवहार पर पड़ता है, जो जनता को कठोर या अप्रिय लगता है। उदाहरण के तौर पर, रात में गश्त करने वाले या हिंसक घटनाओं में सक्रिय पुलिसकर्मी अक्सर तनाव और थकान के कारण सामान्य व्यवहार नहीं दिखा पाते।


केस स्टडी: सोशल मीडिया और जनता का दृष्टिकोण।जनता का पुलिस से असंतोष केवल उनकी मेहनत की कमी का परिणाम नहीं है। यह अपेक्षाओं, संसाधनों की कमी, भ्रष्टाचार, राजनीतिक दबाव, मीडिया प्रभाव और असुरक्षा की भावना का मिश्रण है। समस्या का समाधान केवल पुलिस सुधार में नहीं है। जनता, सरकार और पुलिस,तीनों को मिलकर विश्वास, सहयोग और पारदर्शिता बढ़ाने की जरूरत है।

पुलिसकर्मी अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए दिन-रात मेहनत करते हैं। अगर उनकी मेहनत का सही मूल्यांकन और सम्मान किया जाए, तो जनता में संतोष बढ़ सकता है और समाज में वास्तविक सुरक्षा का माहौल बन सकता है।


 रिपोर्टर सत्येंद्र सैनी