- देवी देवताओं ऋषि-मुनियों की तपोभूमि देवभूमि उत्तराखंड में है कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है
- उत्तराखंड के अल्मोड़ा पिथौरागढ़ जिले में ज्योतिर्लिंग भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है जागेश्वर धाम यहीं से शुरू हुआ लिंग पूजन का आभांरभ
- यह प्रथम मंदिर जहां हुई लिंग के रूप में शिवपूजन की सर्वप्रथम परंपरा उत्तराखंड का पांचवां धाम जागेश्वर धाम भगवान शिव की तपस्थली ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग में से एक
ताराचंद्र उपाध्याय. उत्तराखंड राज्य के अल्मोड़ा जिले में स्थित विश्व प्रसिद्ध जागेश्वर धाम को अब पांचवें धाम के रूप में जाना जाएगा। बता दें कि देवाधिदेव अर्धनारीश्वर शिवशक्ति भोलेनाथ शंकर महादेव ज्योतिर्लिंग जागेश्वर धाम में प्रधानसेवक
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की द्वादश ज्योतिर्लिंगों में प्रसिद्ध जागेश्वर धाम की यात्रा के बाद इसे पांचवें धाम के रूप में मान्यता मिल गई है और इसके बाद यहां धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा तथा रोजगार के लिए नए अवसर पैदा होंगे जिससे लोगों की आजीविका बढ़ेगी। उत्तराखंड राज्य को अब तक केवल चार धाम के नाम से जाना जाता था जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री शामिल थे मगर अब पीएम की जागेश्वर यात्रा के बाद पांचवा धाम भी विकसित हो गया है। जागेश्वर धाम को भी मास्टर प्लान के तहत केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। यह कार्य मानसखंड मंदिर माला मिशन के तहत होगा जिसका शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कर दिया गया है तथा जागेश्वर धाम के आसपास नए पर्यटन डेस्टिनेशन भी विकसित किए जाएंगे जिससे पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर खुलेंगे।
देवभूमि उत्तराखंड में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं जिनका
वर्णन पुराणों में भी मिलता है। देवी देवताओं ऋषि-मुनियों की तपोभूमि पर कई ऐतिहासिक और पौराणिक मंदिर हैं जिनमें हिंदू श्रद्धालुओं की अगाध आस्था है। उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में ऐसा ही एक धार्मिक स्थल है जागेश्वर धाम। जहां सालभर श्रद्धालुओं का आना लगा रहता है। स्कन्द पुराण मानस खंड के 61 वै अध्याय में इस पावन स्थान का वर्णन विस्तार पूर्वक किया गया है जागेश्वर धाम भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग में से एक है। यहीं से शुरू हुआ लिंग पूजन का आभांरभ , यह प्रथम मंदिर है जहां लिंग के रूप में शिवपूजन की परंपरा सर्वप्रथम आरंभ हुई। जागेश्वर को उत्तराखंड का पांचवां धाम भी माना जाता है। जागेश्वर धाम को भगवान शिव की तपस्थली माना जाता है। यह ज्योतिर्लिंग आठवां ज्योतिर्लिंग में से एक है।
इसे योगेश्वर, नागेश्वर या जागेश्वर नाम से जाना जाता है। यह मंदिर शिवलिंग पूजा के आरंभ का गवाह माना जाता है। इस धाम का उल्लेख स्कंद पुराण, शिव पुराण और लिंग पुराण में मिलता है। जागेश्वर में मंदिरों की श्रंखला है । पुराणों के अनुसार भगवान शिव एवं सप्तऋषियों ने यहां तपस्या की
थी। प्राचीन समय में जागेश्वर मंदिर में मांगी गई मन्नतें उसी रूप में स्वीकार हो जाती थीं। ऐसे में मन्नतों का दुरुपयोग
होने लगा। आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य यहां आए और उन्होंने इस दुरुपयोग को रोकने की व्यवस्था की। अब यहां सिर्फ यज्ञ एवं अनुष्ठान से मंगलकारी मनोकामनाएं ही पूरी हो सकती हैं। यह भी मान्यता है कि भगवान श्रीराम के पुत्र लव-कुश ने यहां यज्ञ आयोजित किया था, जिसके लिए उन्होंने देवताओं को आमंत्रित किया। मान्यता है कि उन्होंने ही इन मंदिरों की स्थापना की थी। जागेश्वर में लगभग 250 छोटे-बड़े मंदिर हैं। जागेश्वर मंदिर परिसर में 125 मंदिरों का समूह है। मंदिरों का निर्माण पत्थरों की बड़ी-बड़ी शिलाओं से किया गया है। धाम के सारे मंदिर केदार शैली में
जागेश्वर धाम में सारे मंदिर केदारनाथ शैली से बने हुए हैं। अपनी वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध इस मंदिर को भगवान शिव की तपस्थली के रूप में भी जाना जाता है। पुरातत्व विभाग के अधीन आने वाले इस मंदिर के किनारे जटा गंगा नदी की धारा बहती है। मान्यता है कि यहां सप्तऋषियों ने तपस्या की थी और यहीं से लिंग के रूप में भगवान शिव की पूजा शुरू हुई थी। खास बात यह है कि यहां भगवान शिव की पूजा बाल या तरुण रूप में भी की जाती है। जागेश्वर धाम में भगवान शिव को समर्पित 124 छोटे-बड़े मंदिर हैं। मंदिरों का निर्माण बड़ी-बड़ी पत्थरों से किया गया है। कैलाश मानसरोवर के प्राचीन मार्ग पर स्थित इस मंदिर के बारे में मान्यता है कि गुरु आदि शंकराचार्य ने केदारनाथ के लिए प्रस्थान करने से पहले जागेश्वर के दर्शन किए और यहां कई मंदिरों का जीर्णोद्धार और पुन: स्थापना भी की थी। 7वीं से 12 शताब्दी के मध्य के बताए जाते हैं यहां मौजूद कई
मंदिरों की वास्तुकला और शैली को देख इन्हें 7वीं से 12 शताब्दी के मध्य का बताया जाता है। भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की मानें तो यहां कुछ मंदिर गुप्त काल के बाद और कुछ मंदिर दूसरी शताब्दी के बताए जाते हैं। कुछ लोगों का मानना है कि ये मंदिर कत्यूरी या चांद राजवंश के दौरान के हैं, इस स्थल को लेकर यह भी कहा जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इनमें से कुछ मंदिरों का निर्माण किया था, जागेश्वर मंदिर की पूजा पाठ के लिए मुख्य अर्चक (पुरोहित) परिवार को आदि गुरु शंकराचार्य जी दक्षिण भारत से लेकर आये थे आज भी पीढ़ी दर पीढ़ी वहीं परिवार पूजन कार्य कर रहे हैं, वर्तमान में यह जिम्मेदारी पंडित हेमन्त भट्ट के पास है, ज्येष्ठ पुत्र को ही मंदिर में मुख्य पूजा-अर्चना की जिम्मेदारी रहती है, मुख्य पुरोहित के पास राजाओं, ब्रिटिश सरकार व वर्तमान समय सहित 10 वंशजों के मुख्य पुरोहित चयन के दस्तावेज सुरक्षित है। तथा मंदिर प्रबंधन के लिए कुमाऊं राजा कल्याण चंद देव के द्वारा अपने राज्य से 103 गूठ गांव मंदिर प्रबंधन के लिए दान में दिये गये थे। वर्तमान में जागेश्वर महादेव धाम की नित्य प्रति मुख्य पूजा अर्चना व महादेव का रुद्राभिषेक वहा के मुख्य पुजारी हेमंत भट्ट व अन्य सहयोगी पुजारी करते है