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आज की युवा पीढ़ी के पास अपने बुजुर्गों के लिए वक्त नहीं

आज की युवा पीढ़ी के पास अपने बुजुर्गों के लिए वक्त नहीं

कहा गुम हो गये इकट्ठा बैठकर अपने दुख-सुख बांटते के वो दिन और व परिवार,एक समय ऐसा था कि जब घरों में शाम के बाद सभी घर के सदस्य इकट्ठा होकर बैठते थे और अपने दुख-सुख बांटते थे आज यह देखा जा रहा है कि कोई किसी से बस जरूरत भर ही बोल रहा है!जबकि आपस में बातचीत करने से दिल की बात निकलती है और मन हल्का होता था!कहते हैं कि परिवार एक दूसरे के भाव से जुड़ कर जीवन बिताने का एक यौगिक प्रबंधन है जब कभी भी परिवार के सदस्य या बच्चे किसी परेशानी में होते हैं तो घर के बड़े उनके साथ खड़े होकर उनको हिम्मत देते हैं और बुरा वक्त टल जाता है! लेकिन जब परिवार में प्रत्यक्ष वार्तालाप से ज्यादा मोबाईल मशीनी कारोबार का दौर चलने लगे तो समस्याएं समाप्त होने की जगह और बढ़ ही जाती हैं!पीढ़ी दर पीढ़ी यह सिलसिला चलता आया है कि बुजुर्गों की छांव में घर के नन्हे-मुन्ने पलते-बढ़ते आए हैं और आगे जाकर वही इनकी लाठी भी बनते हैं लेकिन आज की पीढ़ी के पास बुजुर्गों के लिए वक्त नहीं होता व भूल जाते हैं कि एक भौतिक वस्तु में लिप्त होकर व उन रिश्तों से दूर हो रहे हैं जिनकी पूर्ति बाद में नहीं की जा सकती!सही है कि जरूरत और प्रयोग को देखते हुए अद्यतन बनना चाहिए लेकिन इसके लिए किन शर्तों से गुजरना है इसे भी हमें ही तय करना चाहिए! परिवार समाज राष्ट्र हमारे निर्माण के स्तंभ हैं ! आज हम अपने वातावरण को जैसा बनाएंगे कल हमारे बच्चे भी उसी तरह तैयार होंगे हमें आने वाली पीढ़ी को कर्तव्य और भावयुक्त जीवन जीने के लिए प्रेरित करना चाहिए!विकास और व्यक्तित्व के बीच होड़ नहीं लगनी चाहिए ! व्यक्त्वि तभी ऊंचा होगा जब विकास का सदुपयोग हो सके!विज्ञान अपने साथ निर्माण और ध्वंस दोनों लाता है! हमें अपने सूझ-बूझ से निर्माण को चुनना होगा भारतीय परिवार एक भावात्मक सांचे में पोषित होता है माता पिता दादा दादी भाई बहन एक ऐसे तार से जुड़े होते हैं जिसका एक छोर खींचा जाए तो दूसरा भी खिंचा चला आता है! ऐसा नहीं है कि हम पूरी तरह अपने आत्मीयजनों की इच्छा की अवहेलना करते हैं!लेकिन कई बार हमारी सारी संवेदनाएं धरी की धरी रह जाती हैं और वक्त हाथ से चला जाता है! सवाल है कि क्या जीवन में भागना इतना आवश्यक है कि प्रत्यक्ष को खोने की नौबत आ जाए? या फिर जिस भेड़ दौड़ में हम शामिल हैं क्या वही हमारे जीवन का प्राप्य है? थोड़ा रुक कर सोचने में गलत क्या है,इस पर गहनता से विचार करें 


रिपोर्टर सत्येंद्र सैनी